कुण हो बो

जिको लेयग्यो काढ'र

थांरो सो कीं

म्हारै भीतर भीतर

मच रैई है परळ-मरळ

बा’रै फगत मून मून है

टूटग्यो लागै

सो कीं म्हारै भीतर

सोचूं, जूण सांवटीज नीं जावै

इण थाकेलै सूं

म्हूं चाल पडूं

हळवां-हळवां पांवडा मे 'लतो

सोधण सारू बो कीं

जिको लेयग्यो कोई काढ'र

बण'र म्हारो हेताळू।

स्रोत
  • पोथी : थार सप्तक 7 ,
  • सिरजक : अशोक परिहार 'उदय' ,
  • संपादक : ओम पुरोहित ‘कागद’ ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन