काटतो जावै मिनख

आज आपरी जड़ां नैं।

उळझतौ जावै

आपरै बुण्योड़ै जाळ मांय।

अबार रिस्ता-नाता

रैयग्या फगत मतलब सारू

मेळ-मुलाकात अर हेत

रैयौ कठै?

बणग्यो मिनख इब तो मसीन

भूलग्यो अपणायत

थोथी हुयगी है

सैंग मानतावां।

म्हारै मन मांय है

फगत अेक सवाल

मिनख कद बणसी 'मिनख'?

पण,

कुण देवै म्हनैं पडूत्तर!

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : किशोर कुमार निर्वाण ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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