ठन्डी मीठी अ’र दूधीया

पांच पईसा, दस पईसा, री

ऊंची आवाज लगातां

तेज तावड़े मांय

नागण ज्यूं काळी, बळखाती

बळती सड़का माथै

पेट भरण री खातिर

पगा अबाणो, खुल्ली टाट

लियां थरमोस आपरै हाथ

गळी रै नुक्कड़ माथै आय

मचावै ऊभो हेला हेल

ठन्डी मीठी अ’र दूधीया

पांच पईसा दस पईसा

भरै दुफारे तपतो सूरज

लाल बम्ब सी बणगी मूरत

चूवे पसीनों, लीलो गन्जी

आग ऊबळता खीरा उछळे

जदां कै

सोवे है लोग, तिड़की सूं बचण

खस रै टाटे पर पाणी छिड़क-छिड़क

अ’र भण-भण गूंज ऊठै है

बिजळी रै पंखा री

बीं बेळा मांय

दस बरसां रो दयाराम

कुळफी वाळो

गळी-गळी अ’र चौक-चौक मांय

घूम घूम’र हेला मारै

ठन्डी मीठी अर दूधीया

पांच पइसा दस पइसा

इण तरियां दिन भर रोळा करतां

सिन्ज्या री ठन्डी बेळा तांई

बेच’र दस बारह थरमोस

कमीसन री पाई नै जोड़

कमावे कुल रूपियो डेढ।

मेंहगी वाड़ै रौ परताप, भळै

घर मांय “भूवाजी” रो ठाठ

करीदै अध रूपये री दाळ

ठूंगे नै चौखी तरियां सम्भाळ

भाजतो सीधो घर आवे‌

जठे बैठा है पांचू जीव

लगायां आस कमावू री।

देख’र हर्‌या-भर्‌या हुय जाय

चढे जद चूले ऊपर दाळ

बणे है बेजड़ री रोटी

घरां आयग्यो, घरवाळो

दस बरसां रो दयाराम, कुळफी वाळो

काया नै भाड़ो

पी डकळ डकळ पाणी

भूलण नै दुख री जिनगानी

जा पड़े गूदड़ा मांय

थक्यो हार्‌यो ले ठन्डी सांस

भळे, भोर मांय ऊठणे री लियां आस

हुवै है भोर

मचै है शोर

गळी रै नुक्कड़ माथै आय

मचावे ऊभो हेला-हेल

ठन्डी मीठी अ’र दूधीया

पांच पइसा-दस पइसा।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत जून 1981 ,
  • सिरजक : ललित आजाद ,
  • संपादक : राजेन्द्र शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर