कोई कविता लिखूं...!

जद कदै लालचुट

सूरज री पैली किरण

धरती माथै पड़ै

तद म्हनै लागै कै-

कोई कविता लिखूं...

पण तद तो

याद जावै

झूंपड़ी में रोवती

आपरै जीवण नै कोसती

अेक अबला।

फेरूं याद आवै

खूंटै बंध्यो

बेबस लाचार पसु

-कांईं लिखूं?

फेर सोचूं

तो निगै आवै

अेक-अेक बूंद

पाणी नै तरसता

अठै-बठै भागता लोग

-कांईं लिखूं?

फेर सोचूं

तो चिंता घिर आवै

रुजगार री तलास में

फिरता-आखड़ता लाडेसर!

अंतस सूं आवाज आवै-

धूम तावड़ियै में

पेट रै पांपळे सारू

नान्है टींगरां रै सागै

खसती मावड़ी,

खैर,

कोई कविता लिखूं ..!

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : संग्राम सिंह सोढ़ा