छप्पनियै काळ

बिखौ पड्यां

म्हांनै सूंप दीवी ही थूं

आपरी देह।

म्हे थारी छाती रा छौडा छोल

मिटाय लीवी ही

आंतड़ियां री लाय।

थारै पांण

पोतै मिनखा-जूंण

थारै बडापणा नै

युं कीकर बिसराय देवां

अैड़ा नुगरा तौ

भवै कोनीं

म्हे।

स्रोत
  • पोथी : जातरा अर पड़ाव ,
  • सिरजक : मीठेश निर्मोही ,
  • संपादक : नंद भारद्वाज ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम