म्हैं नीं जलमियौ तद भी हा
म्हैं नीं रैवूंला तद भी रैवैला
धरती —आभौ, घर
जीव —जड़
नदियां —जळ
म्हारी ओळख;
'जोसियां री खटकळ'
खटकळ;
म्हारै बाप —दादां रै बसायोड़ी।
ज्यांरै ओळूं रा अैनांण
चौवटिया जोसी
मिंदर —पीपल
अर गिणती रा घर
अजै लग गूंजै है म्हारै कानां में
म्हारै भा’सा रौ निरमळ नेह सूं
दियोड़ौ नांव 'टूट'
अर जगमगै परकास
बाळपणै में बिछड़ी मां-अर
मासी रै लाड रौ,
घर रै खूणै-खूणै हाल,
केई वार सुणीजै म्हनै
दादी रा बोल।
घर में धूड़ अर गोवर
री जागा लेली है।
करसल, सीमेंट अर टेरेजौ
टूटी —बिजळी
आयगी घर मांय
कटग्यौ कद कौ
लाडजी रै घर रौ नीमड़ौ
कितराई ऊपरवाड़ा
मिटग्या
नुवां बणग्या
अबै डागळै अेकला चढतां डर नीं लागै।
निजरां सांभी
व्हेग्या देवलोक
दादी, मां, बाप, छोटी वैन
मासी अर काकी
खटकळ रा बूढ़ा —बडेरा।
जांणूं हूं
औ घर थिर है
थिर नीं है तौ रैवासी
धुड़ भी सकै है घर
व्है सकै मटियामेट
पण घर री ओळूं
नेह री सोरम
नीं मिटै, नीं घटै
घर सूं बिछड़ियां
दूणी बधै।
जाणूं के दुजा घरां में
घणी व्हेला सोराई
मिळ सकै हाउसिंग बोर्ड
रौ मकान
यू. आई. टी. रौ प्लाट
बसायां बसै है नुंवां घर
पण कांई
म्हारै परवार, असबाब
सागै म्हैं वां खुणां,
वां ठांवां, वां ठिकाणां
सोरम अर परकास
नै ले जाय सकूंला साथै?
घर घौडणौ
म्हारै सारू देस छोडणै बराबर
सायत इण सारू ई लोग
म्हारी हंसी उडावै
जोधपुर वाळा नै किल्लौ
दीसणौ कित्तौ जरूरी है?
इणरौ मरम
कांई जांणै वै लोग
जका किरायै रा घरां में
गमाय दी उमर
घर रा ढूंढ़ा छोड
बसग्या कालोनियां में
अर परिवार नियोजन रै नांव
ओछौ कर कुणबौ
सोधौ जीवण रौ सुख
होटलां, रेस्तरां अर
सिनेमाघरों में।
घर में कोनी बसै सिरफ
मिनख, लुगाई, टाबर
घर में बसे ओळूं,
पितरां रा थांन
अर जूना चितरांम
ज्यारैं पांण
नापीजै पीढ़ियां
गाइजै गीत,
घड़ीजै गाथावां
जकी तद भी रैवेला
जद नीं होवूंला म्हैं
नीं होवैला घर
नीं म्हारी जोसियां री
‘ख-ट-क-ळ’।