भोळी!

कठै सोधै है थूं सुख?

आं व्यर्थ री हथायां में!

कै बावळी री गळाई भटकै

आं थोथा रिस्तां री

गळियां में!

कै थूं जांणै,

कठै सूं कदैई कोई आसी

अर कर दैसी

सुख सूं सरोबार थनै!

कै कदास जांणै है,

कै मिळसी सुख थनै

दूजां नै भांडण में?

बावळी!

क्यूं गमावै बिरथा थारौ बखत

सुख रा मारग

बारै कोनी जावै

सुख पाणौ है तौ

उतर थारा हिया में

अठै इज मिळसी थनै

खरौ, पालर अर नेगम सुख

जिणनै पायां मिट जासी

थारै जनमां- जनमां री सोध

स्रोत
  • सिरजक : धनंजया अमरावत ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी