कयां सबद मिले।

कयां सबद मिले।

अेके खानी तिसो भूखो

भूतूळियै ज्यूं दौड़े गूंगो।

अेके खानी झिणकार सुणावै

पायलड़ी पे'र दोपटो मूंगो।

धरती हरियाळी में राजी

अकास दरद बळै।

चिग्लिझतौ सूरज मोनी पताका

सिमट्योड़ी-सी है

चांदो भागे जौवन मांय

पण

सिंझ्या ढळती-सी है

काजळी री बेरन रातड़ी

विधवा कांई जी'र करे

कयां सबद मिले...

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : देवकृष्ण शर्मा ,
  • संपादक : मोहनलाल पुरोहित