कविता-1
लुक्योड़ा है
रूंख रै
रूखै करूप कठोर तणैं में
अणगिणत कंवळा पानड़ा
फूठरा फूल, मीठा फळ
पण बै आसी बारै
जद बुलासी
रुत रौ बायरौ
बिंयां ही
काढ्यां
सबदां रौ घूंघटियौ
बैठी अडीकै
कोई दीठवान नै
अणंत अरथां री धिराणी
लजवंती कविता!
कविता-2
मरगी
काल
भूख स्यूं बाथेड़ा
करती
बापड़ी कविता
लेगी उठा’र
लावारिस ल्हास नै
नगर निगम री
मुड़दा गाडी
आज बांची
छापै में
राखी है
गांवधणी रै बडेरचारै में
विराट
सोक सभा!