वां री निजर मांय

कविता लिखणौ फैसन है

जणा ईज तो

पड़ोसी गिरजो

लिख-लिख कवितावां

उडा देवै पतंग दांई!

म्हैं कित्ती बार

लिखणी चाई कविता

पण नीं लिखीजी...

आज

जणां कागलै

ऊँट री टाकर माथै मारी चांच

तो ठाह नीं

कठै सूं आय'र

पसरगी

कविता

टाकर माथै।

स्रोत
  • पोथी : कवि रै हाथां चुनियोड़ी ,
  • सिरजक : भरत ओला
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