बातां रै खातर

भोत बातां हुई

बातां बंद कर

जद मून में उतर्‌या

तो कविता हुई।

स्रोत
  • पोथी : नेगचार पत्रिका ,
  • सिरजक : अनुराग ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • संस्करण : अंक-16
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