म्हैं देखूं हूं

जंगळ मांय

रूंख रोवता थका

आपणा-आपणा भोजन री

खोज में अपघात

कर रैया है,

घास-दोबड़ी रा आंगणां नैं

अंगरेजी बूंल्या चर रैया है...

अर ऊब रैया है सूरज

पवन सूं बातां करतां-करतां

...अर पसार दी है सड़क

आपणी टांग्यां

‘चतुर्भुज कॉरिडोर’ में

जिण पे आवण वाळा टैम में

मिनखां री लासां...

कारां चलावैगी।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : मोहन पुरी ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण