अखबार सागै करल्यां हां

दो बात देस-दिसावर री

बारणे तांई जाता-जातां

खिंडाय आवू मुळक

जोरांमरदी।

पछै फिरती फिरूं घर मांय

कांई ठाह कांई सोधूं

उमणी-दुमणी सी

लागै की गमग्यो दीसै।

गिणूं अकोलेक चीज नैं

सगळी आपो आपरी जाग्यां

पछै वो कांई है, जिको

लेयग्यो म्हारा सगळा भाव?

अरे! कठै है वा आस

जिण नै सागै लेय'र आयी ही म्हैं।

अर कठै है वो भरोसो

जिण री डोरी सूं बंधगी ही म्हैं

कठै है वो अमर प्रेम

जिण रै गमण रो तो

सुपना में सोच्यो नी हो

लागै है

कठैई ऊंडो जाय'र लुकग्यो दीसै...।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : सिया चौधरी ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham