(अेक)

हड़-हड़ हांसतौ चूलौ तौ

आपरौ चुड़लौ बजाय महकै

महकतौ-महकतौ बांधै मन

अर झाका घालती

टिमक्यरां नै हेला-हेल

बिठावै आपरी छीयां....

हेत रै हाथां

पुरस-पुरसती

कैवती जावै

भरौ ! भरौ नी म्हारै सूं

थारलौ कुंभ!

रह्या अणबोल्या

पण पूछ तौ लेवूं

कठै सूं ऊपजै आग?

(दो)

कुण.... कद करसी

वां तपासियां सूं सवाल के

भोमा रै कुणसै चौभाटै

होया बरफ री सिल?

पांगरसी सांसां में

सांभ नै राखी चालण री हूंस

धिन-धिन भरतां रा पूतां!

आपै पैरियो कै दूजां पैरायौ

जैपुरियौ पग?

चालतां-चालतां आय ढूक्या

जगनाथ रै आंगण

अठैई ऊगती के

तापण री रळी?

कुण कुरसी

वां सूं सवाल के

कठै सूं ऊपजै आग?

(तीन)

कुण पूछैला

वां खोजारां सूं सवाल कै

घास-फूस कै

लीर-लत्ता के

पीळियै सूंडसीज्यां पानां

लाधिया नी कठैई ?

कुणसी आंख सूं दीखी

मुळकती नींद

नींद में हिलरता सपना

अर वां माथै

ऊंधाय दियौ तेल,

घस दी तूळी,

ताप लिया

बणाय जगरौ?

कुण, कद करसी

वां सूं सवाल के

कठै सूं ऊपजै आग?

स्रोत
  • पोथी : अपरंच ,
  • सिरजक : हरीश भादाणी ,
  • संपादक : गौतम अरोड़ा
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