कस्यान चालै जिनगाणी

महंगाई आकास जायनै रुकी

लूण धान रै भाव मिलै,

घी री जग्यां आज चाय री पत्ती,

ज्यो फैला रही तरै-तरै री बीमारी

दूणा दूध री खांड है

गाबो मीटर मिलै

थैलो भर’र धान बेचो जदी।

कस्यान चालै जिंदगाणी

छह महीनां बीत्यां पछै,

खून-पसीना री कमाई ऊं

आया रिपिया कोड़ी,

घणा प्यारा लागै यूं

जद घर आवै दाम,

अेक जणा रै हाथ।

तो मांगै दस जणा,

वांनैं आज चुकाणा

दो बोरी धान घरै आयो,

वीं पैल्यां चुकायो-

दो बोरी धान घरै आयो,

वीं पैल्यां चुकायो-

बिजळी रो बिल अर

पटवारी रो हासल,

चुकाया पछै,

बच्यो है कांई

गेहूं उपजैला जद

बरखा होवै भाग होई

बाकी पड़्या है महीनां च्यार,

धान की बोरी अेकाध

खांड-पत्ती, लूण-मिरच,

खरचो निकाळैलो कद

तद्यां हारी-बीमारी,

अै काज-करियावर पड़्या

या पछै कुण जाणै

दूजो ब्याव मंड्यो बीरा।

जंगळ में चारो कोनी,

नीं है कुआ में पाणी

ढांडा-ढोरां री है कमी

कस्यान होवै खाद री रौड़ी

लावै डीअेपी यूरिया रा थैला,

जद हाक ऊग नै होवै मोटी

दाम चुकाणा है,

बेचो दो-च्यार बोरी,

या पछै सेठ-साहूकार

मांडै दो री मिती रो ब्याज

दो रा च्यार जोड़ै

बाणियो बतावै हिसाब,

आज रूसग्यो है भगवान

करम दूजां का, भुगतै करसाण

कद करै वो बराबरी,

ज्यो करै काळो वौपार

वां लोगां रो घर लांबो-चौड़ो,

अर ऊपर आरसीसी

ज्यो देखै नागो-नाच टीवी में,

कान रै लगा फोन करै बातां झूठी

कूलर रो बायरो, नीमड़ी री छिंया

फ्रीज रो पाणी अर कोरा मटका

चूल्हा पाछै बाथरूम कोनी,

खुलो कांकड़ बस्ती ऊं छेटी।

जीवै मौज-मस्ती सूं गांव रा नर-नारी।

चोर लूटै, लूटै कामचोर अफसर

बेचारा करसाण को घर

नेताजी को मान घणो,

पण करसाण नैं देवै झूठो भरोसो।

कस्यान चालै जिंदगाणी!

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : रतन लाल जाट ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण