बसकाड़ा खाती
तरपड़ती काळज्या की कोर
झाड़्या का तीखा धसूळा में
पड़ी बलारी छै
अमरत जस्यो दूध प्वा भाळी नै
जिन्ह पूतना बण’र जणताई
छुका घाल्यो जहर
न्ह न्हाळी
म्हारा दूध्या मुंडा की आडी
उजाळो करबा कै पैली
बझा गर्यो
बेरहमी की फूंक सूं
चसतो दीयो
बाट न्हाळती रैयगी
घणी साता दे भाळी
गोद की
मीठी लोर्या की
फांकदी कजोड़ा कै नाई
रेवड़ी पे
काट घाली
सम्मान अर संस्कार सूं लपटी
दीया की डोर
कसी भूल काई अपराध छो
कस्या करम छा
जै मली असी मौत
राम तो काढ’र लाया छा
मौत का मुंडा में सूं सीता नैं
बचाई छी नारी की मरजादा
क्यूं हो ताई दाब घाल्यो कंठ
कर सकती चहल-कदमी म्हूं बी
माई का हर्या-भर्या आंगणा में
न्ह देख सकी
कठोर काळज्या हाळी माई का
कर्कस मुंडा नैं
जिन्ह आंसू पूछबा की बजाई
खाड़ गाली आख्यां ई
न्ह न्हाळी बाट
कसूर पूछ’र
माफी मंगा’र माफ करबा की
काई आ ई छै गीता की बाणी
जै करैगो वो ई भरैगो।