फाफरा ठोक ही अब तांई

दांतां’र पांस

ढोकतो रैयो फाफरा सूं

ढाकणा आ... आ... फा... फा....

की रट सूं

मन का रसिया सूं

अर बीज-बीच में

बळबळती

असाढ़ की लाय में

झक्कर स्यापी में

समेट’र कान पोत खरड़-खरड़

खरार करतो

फेर बादळां नै कीं आस में सीजतो

हार्यो-थाक्यो आ’र भी

नगाड़ा बजा’र

देवतान सूं अरज करतो

पसीनो बहा’र

मोती निपजा वाळो छापरान सूं

आछ्यो खाबो अर पहरबो

बार थ्वार सूं

चीकणी चुपड़ी

अेक- अेक ढेकळ में देखतो

जिंदगी का सुपना

छोरी का पीळा हाथ

बण को मोसाळो

माथा पे करज घणो

सगळी जिनगाणी

बीतगी

हाय-हाय करतां

साता कद कुण नैं मिली...?

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : देवकी दर्पण ‘रसराज’ ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण