बडो होयां पाछै मिनख

नी खेलै रेत सूं

बल्कै रेत खुद खेलै छै मिनख सूं

रेत नूंतै छै मिनख नै हेलो पाड़'र

आ..! कर म्हारो उपयोग

म्हूं थनै संस्कृति सूं लेय'र

सारी सभ्यतावां की जातरा

म्हारा कांधा पै बैठाण'र कराऊंगी

थारी कलावां कै धार लगाऊंगी

भर म्हारी मुट्ठी अर रोक पूरी डाट सूं

बता दे जमाना कै तांईं

थारी मानखी ताकत

म्हूं थारा जीवट की ख्यात कै

पांखड़ा लगाऊंगी

थारी कीरत कै चार चांद लगा 'र

सात समदरां पार ले जाऊंगी

हे मानवी !

म्हूं रेत

पूरी दुनिया नै बताऊंगी

कै यो सगस छै

जींनै करली रेत मुट्ठी में।

स्रोत
  • पोथी : ऊरमा रा अैनांण ,
  • सिरजक : अखिलेश 'अखिल' ,
  • संपादक : हरीश बी. शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादमी दिल्ली
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