अेक

ईं जमाना में
गरीब
गरीब को ही
भाई लो बण्यां
पार पड़ै छै
क्यूंकै
बडा आदमी को भाइलो
अस्यां लागै छै
जस्यां
सरस्यूं के साथ में
कचेट लाग छै
राइलो।


दोय

जादा मत उफणै
दूसरा का ताव सूं
ये खाली
झागड़ा ही झागड़ा है
होस में आ
फेर भी तो
समट’र
पींदा में आवगो 


तीन

कस्तूरी मंजन में
खा चै
कस्तूरी
अर
कस्तूरी छै
तो मंजन कोइन।


च्यार

जो लड़ोकड़ो
दांत्या करबाळो
पण
पीसा हाळो
सेठ छै
उंकी
थाणा सूं लेय’र
मंतरी-संतरी
तांई पैठ छै।



स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : देवकी दर्पण ‘रसराज’ ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : पहला संस्करण