आप'सरी में हेत हथायां, मौ'रा जाळा कम रैग्या,

भटकंता नैं बांध रांकले, ऐड़ा ताळा कम रैग्या॥

बे-अर्था रा गाणा गावै, गळो फाड़ अरड़ाय रिया,

मीठै सुर में राग रागणी, गावण हाळा कम रैग्या॥

मनां चोपड़ी बात बणावै, पाछा फिरतां दे गाळी,

मूंडा आगै सांची सांची, कैवण वाळा कम रैग्या॥

कंक्रीट का जंगळ ऊगिया, गोचर नाडा नाडी में,

टीबा डूंगर रूंख रूंखड़ा, नन्दी नाळा कम रैग्या॥

ढ़ोंगी लोभी लुच्चा डोलै, गुरु बण्योड़ा गळी गळी,

बानों धारै सांग रचावै, ज्ञान उजाळा कम रैग्या॥

कांई कैह्वां कुणनैं कैह्वां, बाड़ खेत नं खाय रही,

गळयारै में ल्याळी घूमै, अठै रुखाळा कम रैग्या॥

परदेस्यां री देख्यां देखी, नुआं-नुआं 'डे' रोज मनैं,

तीज तिंवारा रामा स्यामां,'चंचल'चाळा कम रैग्या॥

स्रोत
  • सिरजक : प्रहलाद कुमावत 'चंचल' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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