सांच सूखर्‌यो झूंठ फळै छै कळजुग में।

आला-सूखा सैंग बळै छै कलजुग में॥

किती अहिल्या कळपै राम उड़ीकै नित,

ज्यानैं इंदर रोज छळै छै कळजुग में।

मानी व्हेला सीख, सिया अनुसूया की,

सासूजी नैं बहू तळै छै कळजुग में।

किरसण कर्ण सरीखा व्हेगा मीत जठै,

आस्तीन में स्यांप पळै छै कळजुग में।

कठे खुंगाळी कंठो जोल्यो, तिम्मणियो,

बहुआं कै ब्ल्यूटूथ गळै छै कळजुग में।

पांच पच्चीसूं रळमिल रह्ता राजी सूं,

आमां-सामां देख जळै छै कळजुग में।

साळा-साळी माथै पड़ग्या जीजा कै,

छाती माळै मूंग दळै छै कळजुग में।

कूड़ कांकरा कंचन जड़िया मुकट सजै,

रेत मांय नैं रतन रळै छै कळजुग में।

प्रीत करै तो परख करीज्ये सुण 'चंचल'

दगाबाज दो बार लुळै छै कळजुग में।

स्रोत
  • सिरजक : प्रहलाद कुमावत 'चंचल' ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी