जोयन बीस हजार जोवतां, सहस दस पहिलउ कइलास।

असड़उ रूप अनोपम आखियइ, एकण थंभ तणउ आवास॥

वृखराव तिसा गिरराव विराजइ, अति साखा संबळकता अंग।

सिसहर तणी पाखती सोहइ, ग्रह जांणे लागा गयणंग ।।

तिण पग-पग चंदण तणा तरोवर,विविध-विविध फूली वणराइ।

पंखी मुखि हरि नाम पुणंतां, सुर ताय मानव तणै सुहाय॥

छिलता पहाड़-पहाड़ पाखती, अधर झरंता चरण धरइ।

अंब तणा वृख लुंब आविया, कुंजर विच सारसी करइ॥

छिलता झिलता घणूं छछोहा, ताढी तट छाया वृख ताड़।

मद झरता इतरा मयंगळ, पाएले चालस्यइ पहाड़॥

कसतूरी नाभिनि संधिनि केवल, उडियण जाइ लागा आकास।

मृग तेथि थकत हुया वन मांहे, वाजइ पवन तणा सुर वास॥

वणराय अढारइ भार फळिय वन, कोइल मोर मल्हार करइ।

ईसर तणी आन्या इसड़ी, चांवरियाळ बंबाळ चरइ॥

अवसर एक अनेक आहवइ, करणी मनवंछित फळ काज।

वृख सायर पाखती विराजै, जांणे रथ खांभिया जिहाज॥

नदी वहइ झाबुका नांखती, धोम उदक ची लागी धार।

ईसर तणी आन्या इसड़ी, पइंडउ दइत उतारइ पार॥

स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी काव्य ,
  • सिरजक : किसनौ ,
  • संपादक : मनोहर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादेमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण