म्हारै जलमतां ईं

थनै जगावण बाजै कांसी री थाळियां

साजळा

अर

थांनै रमावण म्हारा देव

मिंदर रा टंकोरा, झालरां

अर नगाड़ा बजाय

संख पूरां म्हैं!

थांनै नहावण

दिनूंगै अबोट पांणी री

जळैरी भरां

भोग देवण धूपेड़ै धूपियां धरां

चढावां गूगळ धूप

पण म्है भूखा मरां

अरे! अकासी भोम रा वासी

कदैई तौ कीं बजाव

म्हनै रमाव।

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : मीठेस निरमोही ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : पहला संस्करण