कविता बेचण आयो रे!

थारै

ठांयचै माथै!

बोल अै

बेचण आयो रे

थारै

ठांयचे माथै!

रंग

चोढ़बा आयो रे

थारै

मांयलै माथै!

पूछूं

कुसल-खेम-थारी...

अर

सुख-दुख री बतळावूं

बोलो,

सौरा हो, कै दौरा?

निजर कीं

आवै हैं कै

बतावूं?

कीरत मिनखपणै री गावूं

हूं तो इकतारै माथै!

आप सबड़काँ खीर खाय

जग नैं बातां रा कलेवा

मिनखपणै रा भासण दे

नित रचणा

जाळ छळेवा!

लोग लड़ै

भासण

सुणबा नैं

आप

माळियां माथै!

जर-जमीन खातर तूं

जोर दिखावै

भुजबळ रो!

कदै गिरजा

मिंदर-मैजीत

भानों ले गुरुद्वारा रो!

पीर पैगंबर

औतार गुरां री

कबऱयां खोद खिंडावै!

जीवां में

सिरमौड़ बजै

पण,

हाथ-हाथ नें खाई...

अैड़ा जंतर

बणा धरय्या कै

कांई करें अबखाई!

थारी आंख्यां अंधारो

चानणों

सांपां रै माथै!

च्यार चवन्नी

चोखी लेस्यूं

इण कविता रो मोल....

च्यार मांय सूं

तीन छोड द्यूं-

जे संभळै कोई बोल!

दुरळभ मिनखाजूण

काळ है-

माथै रै माथै

कविता

बेचण नैं

आयो रे

थारै

ठांयचै माथै!

स्रोत
  • सिरजक : बाबूलाल शर्मा ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी
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