दिन

कितरा अनोखा हुवै

काट्यां नीं कटै

कदी

फुर्रर्र हुब जावै

दीसै विलखा कदी

कदी उमाया

आवै नाचता

अर

जावै गावता

अडीकता रैवां

वांनैं

आस रा रुमालां दांई

अटक्या रैय जावै वै

भविस रै रूंख,

अचांणचक कदी

यूं आवै भाजता

जाणै अठै हा

निगै नीं आया हा

मनाऊं

वांनैं सौगन दिराऊं

रूस्योड़ै टाबर दांई नीं मानै,

धरूं सांयती, बैठ जोऊं

बांधूं निजरां सूं

हथाळी री आडी-तिरछी लींगट्यां बिचाळै

धोरां री उडती रेत ज्यूं

गमती जाऊं

म्हारै पंख लागै

सुपना जागै

थारी छिब उभरै

हथाळी बिचाळै पुहुप ऊगै

जिणरै ओळै-दोळै

उडती फिरूं म्हैं

ज्यूं सैणी तितली।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : किरण राजुपुरोहित ‘नितिला’ ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण