ज्यो लोगड़ा

पुराणा मोल ऊपर

लिखता रह्या मोटी-मोटी पोथ्यां

मंच मालै

गाता रह्या दोहा अर चोपई

भाण्डा री नाई

बजावता रह्या ताल्यां

अर जिण रो भेजो

निपजतो रह्यो-गुलामी री सांकळा

वे लोग आज चैन सूँ बंसी बजा रह्या छै।

पण बे

ज्यो मै'नत कर'र

रोटी अर कपड़ो पैदा करै

अर

गिरस्थी नैं चलावण ताईं

बेचै छै आपरो खून

अर खींचे छै मरचोड़ा मुरदा

उण लोगां ताईं

काईं नाम छै थारी पोथ्यां में,

म्हारा देस !

मैं पूछूँ छूँ

तू कैयां करै छै न्याव

मनै बता

म्हारा देस

कविता नी चाईज इण टैम

चाइजै मनै जुवाब?

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : नमोनाथ अवस्थी ,
  • संपादक : गोविन्दशंकर शर्मा