चन्नण रै वन में
सैल कर’र मुड़ग्यो पाछो
उतराधो सूरज रौ रथ,
किचरीजग्यो
घोड़ां री टाप सूं
हिमाळै रौ गरब,
घाळण लागगी डील
साव माड़ी नदियां
जलमण लागग्या
बगत रै घरां
डीघा दिन अर बावनी रातां,
नीसरग्यो बारै
धरती री कैद तोड़’र
बागी बीज,
सांभ लियौ सिर
पगां तळै चींथींज्योड़ी दूब,
पीड़ा अर अभावां री
सेज पर सूतौ
जुग रौ भीषम
उडीकै हौ
आ ही पुळ घड़ी
अबै इंछ’र छोडैलो
आपरौ खौळियो।