समै रै फेर मांय

मिट जावै

बूझ्या-अणबूझ्या आखर

समै री छाती मंडियोड़ा

आपरी मांगत मांगै

सगळा टूणा-टोटका।

सांमी आय जावै

समै री साख देता

जगत रा चितरांम

भरीज जावै मन

सांस अचपळी भरमावै

मिनखाजूंण

सोधै अपरौ मारग

सांस सांच नीं हुवै

दीठ हवै

जूंण नै देवै नांव

अरथावै वा

मिनखरै मायली दाझ

कायदा समझावै

पाळे-पोसै आस।

पण दीठ

कुण राखै आपरै नांव

समै पल्टौ खावै

बायरौ बाजै

बदळ जावै रीतां

खूटा उखड़ जावे

रळ-मिळ जावै

सगळा आखर,

जूंण रा सगळा नांव

रैय जावै दीठ

जूंण रौ अंक नांव।

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : सत्यदेव चूरा ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी