स्हैर सूं गांव आया

लार लाया

गोबर बासींदा की गंध!

पांडू पूती भीत्यां

घरां नै सामती म्याळां

आंगणां नै मंड्या मंडाण...

लीमड़ा कै नीचै बैठ्या

बूढ़ा मनख

वां की ख्याणी बातां

दूरै पनघट सूं पाणी

लाती बारां को

अणमण्यो दरद।

तळाब को घांट

नंदी की कराड़

रीता भांडा को सुख।

भर्या डूंगर को बधबो

छल अर कपट सूं

दूरै रहबा हाळी नज़रिया

मांडती बगत याद

आवै।

म्हूं तो या जाणूं

अस्यो जीवतो सपनो

बार-बार आवै।

स्रोत
  • सिरजक : जितेन्द्र निर्मोही ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी