आंख्यां मांय रमता रैवै

म्हारा सपना

जलमै आंख्यां मांय

कदैई पूरा व्है जावै सपना

अर कदैई टूटै

पण बणाय लेवै आपरी ठावी ठौड़

आंख्यां रै मांय।

मिनख री दोन्यू आंख्यां

देखै इण जगती नै

रचावै जाळ-जंजाळ

अलेखूं पंपाळ

वठैई जलमै सपना

रंगीजै वठैई

यूं इज पूरी करै

मिनख आपरी-जूण जातरा।

म्हैं देखूं इण जगती नै

म्हांरी दोय आंख्यां सागै

मन री अलेखूं आंख्यां सूं

आंख्यां नै सपना चाही जै,

अर सपना नै

जलम लेवण सारू

आंख्यां।

हरेक आंख मांय

रैवै सपना

अर कैवै इण जगती नै-

जितरी आंख्यां उतरा सपना

भलांई सै पूरा नीं होवै,

पण आंख्यां सपना नै

अर सपनां आंख्यां नै

आपरी निजर सूं

अर दीठ सूं

पल-पल छिन छिन जोवै।

स्रोत
  • सिरजक : गीतिका पालावात कविया ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी