कांई आप
उण री अणूती
बेमतलब री हरकतां
कोनी देखी ?
कांई आप
नीं सुण्यो
उण रो काँपतो सुर
बणावटी मुळक
वो घुसाड़णो चावै
आपणी कमजोरी नै
आपणा बड़ापणां री
पोची भींत रै पिछाडी
वो सदीव
आड़ी देवतो रैयो
नदियाँ रा मारग रे
पण
कांई बदळग्या
उणां रा मारग ?
वो आवाज रा हिरदा में
घुसातो रैयो खंजर
पण कांई ओछो पड़ग्यो।
साँच रो हाको ?
वो करतो रैयो हाका-हूक
सूरज रे मुट्ठी में होवण री
पण कांई उणां री चाकर बणी
उजाळा री एक भी किरण ?
दरअसल
वो बड़ापणा रो धणी कोनी
वो तो पिटारो है
सफा झूठ रो