झेलौ दो रे भाई झेलौ दो!

टूट्यौड़ी टापरी नैं झेलौ दो!

टप टप टपकै टापरी रे, नैणां टपकै नीर

कितरा भूखा सोवै भाई रे, कोई तो पूछौ पीर

दुखड़ा मांहे जीणौ मरणौ, करम मंडयौ है यांकै

लीर लीथरां सूं देखौ ये, कूंकर तनड़ौ ढांकै

ऊंचा ऊंचा मेहल माळिया

झूंपड़ियां ने हेलौ दो। झेलौ दो...

बांध बण्या रे नहरां निकळी, बैवा लाग्या धोरा

कितरा घर भरग्या मायासूं, कितरा रैग्या कोरा

आज तलक नीं झांकी भाई रे, लिछमी यांरी कानी

केसर री कुण बात करे रे, यांरै कोरी बानी

सुख रो समदर थां राख्यौ पण

यां नैं भी तो रेलौ दो। झेलौ दो...

बेचै सूंघै मोल पसीनौ, मैंणत रा बौपारी

कुण सोवै माटी में भाई रे, कुण सोवै चौबारी

अंधारौ ही अंधारौ है, यां की तो जिंदगाणी में

ये जुत्यौड़ा लागै जाणी, बळद जुतै ज्यूं घाणी में

पाट विषमता की खाई अब

सब नैं सुख रो गेलौ दो

झैलौ दो रे भाई झेलौ दो!

टूट्यौड़ी टापरी नैं झेलौ दो!

स्रोत
  • पोथी : मोती-मणिया ,
  • सिरजक : ईश्वरलाल ‘दर्शक’ ,
  • संपादक : कृष्ण बिहारी सहल ,
  • प्रकाशक : चिन्मय प्रकाशन