च्यारूं मेर दीठ नांखतां

म्हारी जरणी रै माथै

खेत खळों मांय

लीतरां ढंकियोड़ा मोट्यार

अर

गिणगोरों निजर आवै!

बादळ नी बरसै

खळां नो निपजै

पदमण रो जोबन

लीतरां मांय दीसै

टाबर कुरलाट करै

साहूकार तकरार कर!

पण—

उणां री फकत पूंजी है—

चूवतो टापरी

गुवाड़ी री पोळ

जनी मूंज री खाट

खेत खळों रो ढेर

गुवाड़ा रा ढेर

घर रा नैना टाबर!

पण—

इण पूंजी सूं, उण री

लूठी पूजी है—

‘सन्तोख’—

है उणां री—

सुख-दुख री साथंण

मान-मनवार री साथंण

जोवण-मरण री साथंण

आंण-बांण री साथंण।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत फरवरी 1981 ,
  • सिरजक : दूदसिंह काठात ,
  • संपादक : महावीर प्रसाद शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर
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