ऊं दन में

दस बार

कांच में

देखबा लागग्यो...

जस्यां अपणा

आप कै तांई

जाणबा लागग्यो।

स्रोत
  • सिरजक : जितेन्द्र निर्मोही ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी