करम करै अर छानै राखै

जाण नहीं पावै कोई

मन रा भाव पढ़ै नीं दूजो

के विचार जाणें कोई?

दृढ़ निश्चै हिड़दा में धरले

कुण-कद पहचाणें कोई?

तत्व ग्यान रो रूखाळै

कद दुसमी कुण जाण सके?

जाणें तो बस धरम अैकलो

करम कठे कुण-कुण जाणै?

जाण-अजाण भेद कर राखे

जगति उणनें पंडित जाणै।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत ,
  • सिरजक : एस. आर. टेलर ,
  • संपादक : डॉ. भगवतीलाल व्यास ,
  • प्रकाशक : राजस्थान साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर