करम करै अर छानै राखै
जाण नहीं पावै कोई
मन रा भाव पढ़ै नीं दूजो
के विचार जाणें कोई?
दृढ़ निश्चै हिड़दा में धरले
कुण-कद पहचाणें कोई?
तत्व ग्यान रो रूखाळै
कद दुसमी कुण जाण सके?
जाणें तो बस धरम अैकलो
करम कठे कुण-कुण जाणै?
जाण-अजाण भेद कर राखे
जगति उणनें पंडित जाणै।