थै म्हारै हिलणै-डुलणै सूं
डरप्योड़ा क्यूं हो?
म्हारै सोचण सूं धूजौ क्यूं हौ!
थै थोड़ौक सौचो तो सरी
कै अेकाध सूळी हुवै
तो उणनै कंधोळिया उंचाय लूं
जीवण
बाजै री चूड़ी ज्यूं हुवै
तो हरेक बाजै माथै बजाय लूं।
आ ठीक है कै म्हारै
पावंड़ै-पावंड़ै सूळियां गडियोड़ी है
पण म्हैं
वां सूं डरप’र
म्हारै सुपना नैं अडाणै कीकर धर दूं?
सौचो तो सरी
अै म्हारा सुपना है
जिका गुरिल्ला दांई
मरनै ई जीवणौ जाणै
पण किणी तानासाह रो
हुकम नीं मानै।