जागता पुरख न आदेस
माई। असो लिया रे जोगिया भेस
माळा नही, कमडळ नाही, न है झोळी हाथ
गयी नहिं वन में, गयी नहिं तीरथ, जग-सू नवायो है माथ
काया में बसियो है भंवर प्रलोभी, इणसू ही तजियो यो देस
कुण प्राणी सूतो, कुण प्राणी जागै
सरवर सूं पंछी प्यासो ई भागै
यो जग सपनो, साचो सो लागै
जाळ फस्यो पंछी भागण लागै
दीसत आधो हुयो रे बटोही, अैसी या माया बिसेस
तन रंग दीनो, मन रंग दीनो
रंग दीनो सील-संतोस
जलम-जलम रा करम रग्या में
जब लग रयो कुछ होस
अब तो सुख रै ही ‘साधन’ सागर कट गया सरब कळेस।