अेक हूक-सी उठै हिवड़ा में

जद थै कर्तव्य सूं चूकग्या!

जिका मां-बाप

दुख सूं थानै कस्यो मिनख,

वां सूं थां रूठग्या

वै भूखा रह्या, वै रोता रह्या

पण थानैं आंच नी आवा दी

जद थांनै विदेस में भणवा भेज्या

वां की थाळी में नीं रोटी ही

वां खुद री चिंता नीं करी

थांरी खुसियां रै खातर

वै कड़ी धूप में पैदल चाल्या

थांकी उड़ाण भरण खातर

थै घणा बड़ा अफसर बणग्या

पण वां क्यूं भूलग्या

अेक हूक-सी उठै हिवड़ा में -

जद थै कर्तव्य सूं चूकग्या!

अजै बगत है सोचलो

घर पाछा जावो, बावड़ो थै

वां हाथां नैं थाम पाछा

जो बांच रैया है थांरा आखर

ईं धरती पर वै रूप भगवान रो

थै या कस्यान भूलग्या

इक हूक-सी उठै हिवड़ा में

जद थै कर्तव्य सूं चूकग्या!

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : कृष्णा सिन्हा ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham