जद म्हैं उण नैं देख्यो
पीड़ सूं दो-दो हाथ
करतां।
म्हांनै लखाव पड़यौ कै
मौत भी करावै है, कदैई-कदैई कीं
सुख रौ अेसास।
मौत भी अैक पीड़ भगावण
री अचूक दवा है
जकि हर पीड़ नैं मिटाय
देवै है।
कदैई-कदैई सांसा नैं
रो’कर
पीड़ सूं निढ़ाल मिनख
फगत मौत मांगे है
पण मौत भी सोरे सांस
नीं मिलै है।
डोकरां रै दिएड़ी आशीषां
कदैई खतम हौवती नीं लागै
बो बस पीड़ सूं निढ़ाल
हौवतो रैवे,
रात-दिन, दिनूगै-सिंझ।