गरमियां में जे चालै

रात नैं ठंडी पून

अर सावण-भादवै में

मे’ह बरसै जे खेतां-खेतां

अर कातीसरो हुवै

धपाऊ रो

स्याळै में रातां हुवै

न्याई तो किसीक रैहवै

तो के फरक पड़ै उपर आळै रै

पण

जे सगळा सूं नेह राखै

चोरी जारी छळ कपट झूठ सूं

दूर रैहवै निचलो तो

के फरक पड़ै।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थली ,
  • सिरजक : मनोजकुमार स्वामी ,
  • संपादक : श्याम महर्षि ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी साहित्य संस्कृति पीठ राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति (बीकानेर)