थूं किणी दिन

लोग मांय सूं टूट जावैला

पछै वांनै ठा पड़ेला

आपां आपस में जुड़ रैया हां

वांनै ठा पड़ेला

जुड़णौ

मसीन री भांत नीं

इतिहास री भांत है

कोई पगडांडी, कोई पतळी-सी'क लकीर

जिकी ठीक मारग ताईं जावती ही, सोधूं

थारी मंछा है

थारी थकान मिटावण सारू

अेक लंबी जातरा माथै पाछौ जावण सारू

कोई गीत गावूं, कोई कवित लिखूं

अबै थूं आयगौ है तौ जा,

देख, म्हैं पाछी कलम पकड़ी हूं आज

थूं थारी के

कै सनी रोही री कहाणी

के थारौ हासिल के, थारौ विरसौ के

दोस्तां री के, दुस्मियां री तैयारी बता

थूं कैवतौ जा

सोच-सोच'र कैवतौ जा

म्हैं हूबहू लिखूं

कैवतौ जा

दिन ऊग्यां पैली सगळी बातां कै'जा

जिकी थूं कैवणी चावै

इणसूं पैला के कोई दरवाजौ ठोकै, निकळ जा

म्हैं थारै वास्तै अक गीत गावूला

म्हैं थारै वास्तै अक कविता लिखूंला।

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : आत्माराम ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी