इंतकाळ सारू

गेड़ा काटतां

भेरियै रो

इंतकाळ होग्यो।

किरसाण सारू

जमीं रो इंतकाळ

होवै है ठाडी बात।

सोरो सो इंतकाळ

चढा देवै तै'सील रा बाबू...

किसी पोल पड़ी है!

बण्या फिरै किरसाण

बाबूवां रै

पगां में दड़ी।

स्रोत
  • पोथी : बेटी ,
  • सिरजक : मनोजकुमार स्वामी ,
  • प्रकाशक : बोधि प्रकाशन ,
  • संस्करण : Pratham