कद्या कद्या मन व्हे कै

बात करूं आपणा लोगा सूं

पण ममता रा सबद कोनी

अर म्हे समझ्या कोनी

व्हाका सुपना नै

खिड़क्या सूं झांकता आकाश का टूंका ने

अर उधारा दिया सबदा ने

म्हूं भोळी जनता

काळी मूंड रो मिनख

बिधाता रा लेख रो हामी

आपणी दू:खतो आंख्या

अर काळज्या रो कोर रा दरद ने भटक

म्हारी बात ने सुणे कुण

किणरी काळज्यो अनुभ

ज्यासू चालात पग हो जावे एक मण

नी जाणू...

क्यू आज...

चढ़ावा पे चढ़तां रोट ने देक्यां पछे भी

भेरू अर भोपा दोन्यू चुप है।

घणा अजब है...

यूं तो जाणु क’ जागरण री वेळा

गजर रा ढोल पे भेरू अर भोंपा

जात्री री जेबां रा बजन देख हरखावें

अर म्हूं बनां समझ्या ही

समझण री डफोळ में नाड़ हला’ऊं

अर भोग रो पातळ पे भविस रा चतराम बणाऊ

—पण भूखा भोपां

क्यू निगळ जावो। सांच रा सबद

थे भाव काढ़ो तो काढ़ो

पण क्यूं याद करावो सुख रा भाकर

जद्या क’ काल ही तो भागे हा म्हांसू

आज रे वास्ते उधार आखर

पण म्हारे रोतता ही

आंधी होगी गांब गळीया

गांबा खेचे देवरा री थडियां

पण कुण सुणे

बिलखण री बात कोनी

काल रा आखर आज कोनो

तो अबे म्हू फेर्‌यू बणास्या

टूटी इच्छावां रा आकाश ने

ढीली करस्या गळे पड़ी फांसनै

उधारा आंखरा री बात दो पावन्डा चाल

पछे तो सबां री नाड़क्या हाले।

स्रोत
  • पोथी : जागती जोत फरवरी 1981 ,
  • सिरजक : नन्दकिशोर चतुर्वेदी ,
  • संपादक : महावीर प्रसाद शर्मा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी, बीकानेर