हूंस री पांख

अर मैं हो

सैर सूं गांव मांय।

प्रवास सोचतो

सिर पुचकारती मां

पूछैली खोद खोद’र

म्हावळै

दुःख-दरद रो हिसाब।

बिछोह रै दर्द मैं

धूज जावैळी

बापू री आवाज कै

बेटा थूं बिन

आधो-अधूरो छूं मैं

इब अठै राह

घर गांव में।

भाई सूं गलबटियां

राम-भरत सो मिलाप

विछोह रो जिकरो होसी

जजबात में।

आसुंवां रो बांध थामती

रोवणै आई भैण रा

मुश्किल पूटै बोल।

पण यो के?

बणिक रिश्ता

उछाह सूं

सै री पेई खोलता

अेक अेक चीज टटोळता

उळझग्या

म्हारलै

आदम अर खरच रा

हिसाब में।

स्रोत
  • पोथी : राजस्थानी तिमाही पत्रिका ,
  • सिरजक : हरदान हर्ष ,
  • संपादक : श्याम महर्षि
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