हूं तौ रमती बाळू रेत

किरकिरी लागूं।

सांच बोलूं सगळां नै

सिरफिरी लागूं॥

म्हारा सोना-रूपा केस

झळक-झळक करतौ भेस

म्हारी आंख्यां में महेस

पल में जाऊं देस-विदेस

ढोंग करता ढ़ैलां नै

सरसरी लागूँ॥

कोई कैवै मन्नै प्यास

कोई बोलै है उदास

कोई हेरै म्हारै पास

कामंण-कामंणी सी सांस

छळ करता छैलां नै

फरफरी लागूं॥

कैवै जठै नहीं रेत

बठै उगे नहीं खेत

मंगल, चांद नैं ही देख

हाल आयौ कोनी चेत

हरि हेरता धौरां नै

हर-हरि लागूं॥

सांच बोलूं सगळां नै

सिरफिरी लागूं॥

स्रोत
  • पोथी : रेत है रतनाळी अे ,
  • सिरजक : पूजाश्री ,
  • प्रकाशक : के. के. भवण मुम्बई ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण