घोड़े माथै सवारी

करण सूं पैलां सवार जद

उण रै पुठां माथै

हाथ फेरै पुचकारै, तो

घोड़े रौ हिणहिणावणौ

घणो चोखौ लागै!

पण जद आदमी

पीठ माथै हाथ फेरतांई

घोड़े ज्यूं

हिणहिणावणौ सुरु करै

तौ अणखणाट-सी लागै!

घोड़े माथै सवार

घणौ व्हालौ लागै

पण आदमी माथै सवार

जी बाळ नांखै!

चाबुक सटकायां

घोड़ो तबड़क नाठै

टप-टप री अवाज दाय आवै,

आदमी री हांफळ दौड़

रूं-रूं में कीलां ठंठोकै!

सवार री निजर में

कीं फरक कोनी

घोड़े अर आदमी में,

दोनूं सवारी है

दोनूं दौडै जणां

दांणां पाया करै

घोड़ो हिणहिणावै

आदमी हिणहिणावै,

इयै रौ मतलब कोनी

के आदमी, घोड़ौ हुयग्यौ!

हिणहिणावणौ

घोड़े रो धरम है

नियति है,

पण आदमी री मजबूरी है।

घोड़ो फगत

हिणहिणा सके।

आदमी

सिंघ ज्यूं दहाड़ सकै,

हाथी ज्यूं चिंघाड़ सके,

आदमी, आदमी ज्यूं

बोल सकै, संखनाद कर सकै।

घोडौ सवार नै

पीठ सूं पटक तौ सकै

पण सवार माथै

सवारी कोनी कर सकै!

आदमी

पटक भी सकै

अर सवार माथै जींण कस

सागीड़ी सवारी पण कर सके!

मांनू

आदमी रौ हिणहिणावणौ

पेट सारू है,

तौ कांई

दहाड़ण सूं, चिंघाड़ण सूं

पेट कोनी भरीजै?

कद पतियारौ कर जोयौ

स्यात आदमी हाल तांई

बात अंगेजी कोनी!

आदमी घोड़ो क्यूं बणै,

क्यूं हिणहिणावै।

स्रोत
  • पोथी : अंवेर ,
  • सिरजक : पुरुषोत्तम छंगाणी ,
  • संपादक : पारस अरोड़ा ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी