पाणी नो हाँप हेटकौर कैंवाय

मासलँ ने डेटकँ खाय,

मनख जोवै नै हँपाई जाय।

रंगे नै रुपै हाप हरकौ देकाए,

अटले हाँपस केवाए।

हाँप ने कोणँ पारै,

ने कोण दूद पीयाडै ,

अेनौ तो नामस बियाडै।

हाँप कौंडलौ मारै

ने फोंण फुलावै

फुफकारै, नै तोड़ी खाय,

भायगेस कोक, बसी जाए।

जेर ने काजण, यो, कार केवाईग्यौ।

मनखं नो दुस्मण, गणाई ग्यो।

ज्यँ बी देखँणाँ

भाटा, लट्ट, ने बन्दूकै साली

तरत मराई ग्यौ।

पण हवै हाँप मराता नै हैं

हेटकोरीयँ मोरै करी नै

मज्जिदै तोड़ावी नाकैं

मंदरं तोड़ावी नाकैं

ढगला बंद हेटकोरीयँ ,

मरावी नाकैं।

हाँप हँपाई जँए,

दोर मँय पई जँए

मासलँ डेडकँ ने हेटकोर

कसरघाण थई जँए।

स्रोत
  • पोथी : वागड़ अंचल री ,
  • सिरजक : अटल उदयपुरी ,
  • संपादक : ज्योतिपुंज ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham