भावना रो अेक

हबोळो समचै ब्हैगी

म्हारा संजम री पाळ

अतरेताळ।

अर, म्हैं बावळी

देखती, रैयी

धुंआ, धुंआ होती

जिन्दगाणी नै॥

मन रो बेलगाम घोड़ो

दौड़तो रैयो।

आडे कांकड़, दरबड़ां दरबड़ा।

चेतना रो चामट्यो

उलझग्यो, स्वेटर रा फन्दा ज्यूं

अर,

थारो, म्हारो हेत।

जाणै, नन्दी रा

ढावा आली रेत॥

स्रोत
  • पोथी : बदळाव ,
  • सिरजक : हेमलता पारनेरकर ,
  • संपादक : सूर्यशंकर पारीक ,
  • प्रकाशक : सूर्य प्रकाश मन्दिर, बीकानेर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण