जमानो बंध्योड़ो है

जात अर धरम मांय

मिनख-मिनख बिचाळै

अे डीगी-डीगी भींतां भींतां।

आं चमकता कंगूरा नै

ओळखतो कुण

किणनै दिखावता

लोक देखापै री चमक

जे हेत मांय नी रळती नींव…

हेत नै नीं पूग सकै

आपां री सींव

निवण हेत नै…

निवण रेत नै..!

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : गौरीशंकर प्रजापत ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham
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