बिरखा में नी गळ्या होवैला

तावड़ै नीं पिघळ्या होवैला

थांरै मगरां ही मांडी

होठां री सैनाणी म्हारी।

हां, आज उळझै

म्हारै कमीज रै बटण मांय

थारो अेक लांबो बाळ

आज ब्याळ-बगत

यादां रा जुगनू

नै'र रै पार तांई

पळकता दीसै।

अेक हेत

अर अेक विस्वास

हस्यो राखै झिरक

जिंदगाणी नैं

आज ई।

स्रोत
  • पोथी : मंडाण ,
  • सिरजक : चैन सिंह शेखावत ,
  • संपादक : नीरज दइया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी भाषा, साहित्य एवं संस्कृति अकादमी ,
  • संस्करण : Prtham